बावरा हूँ मैं इश्क़ मे तेरे
पर तेरी मौजूदगी का मैं मोहताज नही
हसरत थी साथ जीने की तेरे
पर तेरा ज़ाहिर होना ज़रूरी नही
पी चुके है जी भर के जाम आंखों से तेरे
अब उस नशे का भी हमपे कोई जोर नही
यह तोह अब इब्तिदा है एक नए जुनून की
पर इस सोज़ का तेरे से कोई वास्ता नही
कवि की कल्पना ही तोह है सब कोई
अब यह कलम की सिहाई से किसी के वजूद का कोई वास्ता नही।
पर तेरी मौजूदगी का मैं मोहताज नही
हसरत थी साथ जीने की तेरे
पर तेरा ज़ाहिर होना ज़रूरी नही
पी चुके है जी भर के जाम आंखों से तेरे
अब उस नशे का भी हमपे कोई जोर नही
यह तोह अब इब्तिदा है एक नए जुनून की
पर इस सोज़ का तेरे से कोई वास्ता नही
कवि की कल्पना ही तोह है सब कोई
अब यह कलम की सिहाई से किसी के वजूद का कोई वास्ता नही।
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