I write poems on topics that move me in Hindi and in English. You may also find a few sketches which I try to sometimes draw for fun's sake (I am no good).
Saturday, December 29, 2018
हम
बूंद बूंद पानी को तरस गए है हम
बेपरवाह रोड़े गए वो नदी है हम
एक उजड़ी बस्ती का घर के हम
वीराने में खड़े अकेले हैं अब हम
न किसी का रूह न किसी की परछाई है हम
बस एक टूटे सपने का सारांश है हम
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