Tuesday, May 14, 2019

Khoobsurat hai tu

तेरे माथे पे वो छोटी सी बिंदिया, कैसे बयान करू तुझपे कितनी जचती है,
जैसे पूर्णिमा की रात का चमकता चाँद।

तेरे आंखों पे जो काजल सजा है, कैसे बयान करू तुझपे कितना जचता है,
जैसे किसी द्वीप को ओढे एक घेरा समुन्दर।

तेरे कानो से थिरकते वो झुमके, कैसे बयान करू तुझपे कितने जचते है,
जैसे नित्य में लीन कोई अप्सरा।

और यह नथ, कैसे बयान करू तुझपे कितना ही जचता है,
जैसे किसी बाग का वो अकेला खिला गुलाब।

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